आजकल अख़बार पढ़कर सापों के बीच एक ख़ुशी फैली हुयी है ,
जहरीले उस माहोल में एक मदहोशी फैली हुयी है |
पुराने से पुराने दस्तावेज़ खंगाले जा रहे है ,
लापता हुए ‘जहरीलो’ के नाम ढूंढे जा रहे है |
एक उम्मीद से उनकी आँखे चमकी हुयी है,
की राजनीती में उनकी बिरादरी भी डटी हुयी है |
बड़े-बुढे उनकी पहचान के कयास
लगा रहे है ,
बच्चे त्यौहार की उम्मीद में ख़ुशी मना रहे है |
साँप राजनीती में है जब से नेवलो ने सुना है ,
तब से उनकी प्रजाति बिलों में अटकी हुयी है |
साँप बिलों से निकल आतंक फैला रहें है,
आखिर उनके रिश्तेदार देश चला रहे है |
इंसानी दिलो में मातम की कीलें धंसी हुयी है ,
“विशाल” उनके जीवन की डोर साँपो के बीच फंसी हुयी है |
:- विशाल
सर्राफ ‘धमोरा’
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